छठ पूजा 2025: इतिहास, महत्व और धार्मिक मान्यताएँ
भारत उत्सवों की भूमि है और यहां हर त्योहार अपनी एक अलग पहचान और विशेष महत्व रखता है। इन्हीं पर्वों में से एक है छठ पूजा, जिसे सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। आज यह पर्व केवल इन राज्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया भर में बसे भारतीय प्रवासी भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।
छठ पूजा एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य देव की पूजा की जाती है। इसमें न केवल अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, बल्कि उगते सूर्य को भी नमन किया जाता है। यह त्योहार प्रकृति, श्रद्धा, अनुशासन और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा का इतिहास बहुत पुराना है और इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं।
- रामायण काल से संबंध:
ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य देव की आराधना की थी और उसी समय से छठ पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया। - महाभारत काल की कथा:
महाभारत काल में भी छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि कर्ण, जो सूर्यपुत्र थे, वे प्रतिदिन सूर्य देव की उपासना करते थे और जल में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। इसी परंपरा से छठ पूजा की शुरुआत हुई। - छठी मैया की उपासना:
लोक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया, सूर्य देव की बहन हैं। उन्हें संतान सुख और परिवार की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। यही कारण है कि छठ पूजा में महिलाएँ विशेष रूप से संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
धार्मिक महत्व
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि सूर्य जीवन और ऊर्जा का स्रोत हैं। आयुर्वेद और वेदों में भी सूर्य की किरणों को स्वास्थ्य और दीर्घायु का कारण बताया गया है।
- सूर्य देव को अर्घ्य देने से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है।
- यह पर्व व्यक्ति को आत्मिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
- छठ पूजा में कठोर व्रत और तपस्या से मनुष्य की आत्मा शुद्ध होती है।
व्रत और नियम
छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत चार दिनों तक चलता है और इसमें अत्यंत शुद्धता और नियमों का पालन करना होता है।
- नहाय-खाय (पहला दिन):
इस दिन व्रती स्नान कर शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं। घर की सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। - खरना (दूसरा दिन):
खरना के दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को गुड़ और चावल से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद ही व्रती अगले दो दिन के कठिन व्रत की शुरुआत करते हैं। - संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन):
इस दिन व्रती नदी, तालाब या घाट पर जाकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। वातावरण भक्ति गीतों और लोक संगीत से गूंज उठता है। - उषा अर्घ्य (चौथा दिन):
अंतिम दिन प्रातःकाल उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद व्रती व्रत का समापन करते हैं और प्रसाद बांटते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
- यह पर्व स्वच्छता, अनुशासन और संयम का संदेश देता है।
- छठ पूजा सामूहिक एकता का प्रतीक है, क्योंकि इसमें पूरा समाज मिलकर घाटों की सफाई करता है और पूजा की तैयारी में सहयोग देता है।
- यह त्योहार लोकगीतों, भक्ति संगीत और पारंपरिक प्रसादों (ठेकुआ, कसार, फल आदि) के बिना अधूरा है।
छठ पूजा 2025 की तिथियाँ
वर्ष 2025 में छठ पूजा का आयोजन अक्टूबर-नवंबर के महीने में होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व चार दिनों तक निम्न प्रकार से मनाया जाएगा:
- नहाय-खाय: 26 अक्टूबर 2025
- खरना: 27 अक्टूबर 2025
- संध्या अर्घ्य: 28 अक्टूबर 2025
- उषा अर्घ्य और व्रत का समापन: 29 अक्टूबर 2025
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छठ पूजा के प्रमुख नियम
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शुद्धता और पवित्रता का पालन
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छठ पूजा में व्रती को मन, वचन और कर्म से पूरी तरह शुद्ध रहना होता है।
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घर की सफाई और पूजा स्थल को स्वच्छ रखना अनिवार्य है।
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पवित्र जल का प्रयोग
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स्नान और अर्घ्य के लिए केवल गंगा जल, तालाब या कुएं का जल प्रयोग किया जाता है।
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भोजन और प्रसाद बनाने में भी पवित्र जल का ही उपयोग होना चाहिए।
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व्रत का पालन
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व्रती 4 दिनों तक विशेष नियमों का पालन करते हैं।
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खरना के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास रखा जाता है, जिसमें पानी तक नहीं पिया जाता।
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मांसाहार और नशे से परहेज
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छठ पूजा के दौरान घर में मांस, मछली, अंडा और शराब पूरी तरह वर्जित होता है।
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व्रती और परिवारजन सात्विक भोजन ही करते हैं।
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सूर्य उपासना और अर्घ्य
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छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
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व्रती नदी, तालाब या घाट पर जल में खड़े होकर सूर्य देव को नमन करते हैं।
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प्रसाद की शुद्धता
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प्रसाद जैसे ठेकुआ, कसार, फल और गुड़-चावल से बनी खीर पूरी शुद्धता से बनाए जाते हैं।
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प्रसाद में नमक, लहसुन और प्याज का प्रयोग नहीं होता।
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नवीन वस्त्र धारण करना
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व्रती साफ और नए कपड़े पहनते हैं, जिन्हें आमतौर पर बिना सिलाई का होना चाहिए।
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महिलाएँ प्रायः साड़ी और पुरुष धोती पहनकर पूजा करते हैं।
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सात्विक आचरण
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पूजा के दौरान झूठ, क्रोध, लोभ और हिंसा से दूर रहना अनिवार्य है।
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व्रती और परिवारजन पूरी आस्था और भक्ति के साथ व्रत निभाते हैं।
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छठ पूजा के नियम व्रती को अनुशासन, संयम और शुद्धता सिखाते हैं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन में आत्मसंयम और सकारात्मकता का मार्ग भी है।
निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण है। यह त्योहार न केवल सूर्य देव की उपासना का माध्यम है, बल्कि परिवार, समाज और पर्यावरण के प्रति आभार व्यक्त करने का भी अवसर है।
आज के बदलते दौर में भी छठ पूजा अपनी पवित्रता, अनुशासन और आस्था की वजह से लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखता है। यही कारण है कि इसे न केवल बिहार या उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में बसे भारतीय समुदाय भी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाते हैं।